राज पुरोहित समाज में बढ़ते खर्चों पर सामाजिक कार्यों शादी में हल्दी रस्म, मेहंदी रस्म,बहु देखने जाना, जमाई देखने जाना, शादी से पहले प्री वेडिंग शूटिंग , शादी से पहले बिंदनी रा कुम कुम पगला करना इन फालतू खर्चे पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए। सब के घर एक जैसे नहीं होते, सब का ध्यान रखना चाहिए पैसे वाले तो समझते हैं उनको समाज से कोई मतलब नहीं है जी चाहे उतना दिखावा करते हैं उसके पिछे हर कोई सोचता है उन्होंने इतना बढ़िया खर्च किया है तो हमें भी थोड़ा शादी में खर्च करना चाहिए । इसी तरह एक दूसरे के पिछे खर्च की होड़ लगी है। अरे बहु अपनी हैं वह अपने घर आएगी तो आप चाहे इतना खर्चा कर सकते है बहु को पूरे सोने की जेवरात बनाकर दे सकते हो। शादी के समय पूरी समाज का ध्यान रखकर सभी समाज बंधु शादी के खर्चे कम करें ताकि किसी को कोई बात की परेशानी नहीं रहे और नव परगना राज पुरोहित समाज ब्रह्म धाम कालंद्री का एक ही संदेश हों कि नव परगना में एक जैसे सभी रीती रिवाज होना चाहिए। कहने में तो नव परगना समाज एक है तो नवो परगना में रिवाज अलग अलग क्यों ? सभी समाज बन्धु और मातृ शक्ति मिलकर हर एक नियम सभी परगनो एक जैसे लागू करने चाहिए और लेटर में लिख कर नियम बना कर हर पट्टे मे भेज देना चाहिए । शादी ब्याह में कपड़े लेने देने का ब्यावार बंद करके कवर देने जैसा नियम बनाना चाहिए। घर की बहन बेटी को खूब दो,और नव परगना समाज ब्रह्मधाम कालंद्री सबको इस मैसेज पर ध्यान जरूर देना चाहिए।
जो लोग आज 50 लाख उड़ा रहे हैं, कल वही लोग अस्पताल में 5 लाख का इंतज़ाम नहीं कर पाते।
मुसीबत में न रिश्तेदार आते हैं, न डीजे वाला। सिर्फ़ बैंक बैलेंस काम आता है।
मैंने पिछले 5 साल में दर्जनों घर देखे हैं जो बेटी की शादी के बाद “घर” रह गए, पर “घरवाले” नहीं रहे।
ज़मीन गई, गहने गए, नौकरी पर EMI गई, नींद पर दवाई गई, और सम्मान पर “क़र्ज़दार” का ठप्पा लग गया।
एक शादी ने पूरा परिवार 15-20 साल पीछे धकेल दिया जाता है।
पहले गाँव में तीन मौक़े ही सार्वजनिक होते थे – तिलक, हल्दी, ब्याह।
बाकी रस्में घर की चार दीवारी में 10-15 लोग अपनों के बीच में
मंदिर में 11 बजे तक फेरे, घर आकर 51 लोग खाना खाकर चले जाते थे। ख़र्चा? 50-70 हज़ार।
और शादी हो जाती थी – खुशी से, शांति से, बिना क़र्ज़ के।
आज वही शादी एक “इवेंट मैनेजमेंट कंपनी” का प्रोजेक्ट बन गई है।
एक साधारण मध्यमवर्गीय शादी का हिसाब (2025 के रेट से):
- सगाई (रेस्टोरेंट + 50 लोग VIP खाना) → 1.2–1.5 लाख
- रिंग सेरेमनी (अलग से!) → 80 हज़ार–1 लाख
- छेका/गोड़भराई → 50-80 हज़ार
- तिलक (पूरे गाँव को खिलाना + टेंट + DJ) → 4–6 लाख
- हल्दी (फिल्मी थीम डेकोरेशन + फोटोग्राफर + ड्रोन) → 2–3 लाख
- मेहंदी + महिला संगीत (दो अलग-अलग फंक्शन) → 2.5–4 लाख
- शादी का दिन
• हॉल/फार्महाउस → 3–5 लाख
• 30-40 गाड़ियों का किराया → 1.5–2 लाख
• बैंड-बाजा-घोड़ी-DJ-लाइट-पटाखे → 2–3 लाख
• खाना (1000+ लोग) → 4–6 लाख
• कपड़े-गहने-मेकअप → 5–8 लाख - रिसेप्शन (फिर वही सब दोहराओ) → 5–7 लाख
कुल मिलाकर एक “साधारण” शादी: 30-45 लाख
दोनों पक्ष मिलाकर: 60-90 लाख
अब ज़रा आम आदमी का हिसाब देखिए:
महीने की कमाई: 50-70 हज़ार
शादी का ख़र्च: 60-90 लाख
यानी 10-12 साल की पूरी सैलरी एक रात में उड़ा दो।
और ऊपर से दहेज 10-20 लाख।
नतीजा?
- ज़मीन बिकती है
- माँ के गहने गिरवी पड़ते हैं
- बाप रात-रात भर नींद की गोलियाँ खाता है
- लड़की की विदाई के बाद माँ रोती है – खुशी से नहीं, डर से।
टीवी सीरियल और इंस्टाग्राम रील्स ने हमें सिखाया है कि:
“शादी बड़ी नहीं, इवेंट बड़ा होना चाहिए”
और हम बेवकूफ़ी से वही कर रहे हैं।
सच ये है –
शादी का असली गवाह मंदिर का शिवलिंग होता है, इंस्टाग्राम की रील नहीं।
शादी का असली आशीर्वाद माँ-बाप का हाथ सिर पर होता है, ड्रोन शॉट नहीं।
और शादी के बाद का सुकून क़र्ज़मुक्त नींद होती है, 5-सितारा रिसेप्शन नहीं।
मेरा प्रस्ताव – वापस वही पुराना तरीक़ा:
- सगाई घर पर, 15-20 लोग
- शादी मंदिर में, सुबह 11 बजे तक फेरे
- सिर्फ़ 10-15 सबसे करीबी लोग
- शाम को गाँव/मोहल्ले/सोसायटी में सामूहिक भोज – सबको बुलाओ, दिल खोलकर खिलाओ
कुल ख़र्च? 2-3 लाख। सम्मान भी बचेगा, ज़मीन भी बचेगी, नींद भी बचेगी।
जो लोग आज 50 लाख उड़ा रहे हैं, कल वही लोग अस्पताल में 5 लाख का इंतज़ाम नहीं कर पाते।
मुसीबत में न रिश्तेदार आते हैं, न डीजे वाला। सिर्फ़ बैंक बैलेंस काम आता है।
अगर तुम भी थक गए हो इस दिखावा-प्रदर्शन से,
तो आज से ठान लो –
मेरी आने वाली पीढ़ी की शादी मंदिर में होगी,
10 अपने लोगों के बीच होगी,
और बचा हुआ पैसा बेटी के नाम RD में डाल दूँगा।
कृपया इस पोस्ट को हर उस पिता तक पहुँचाओ
जो आज रात सोते वक़्त छत की ओर देखकर सोच रहा है –
“बेटी की शादी कैसे होगी…?”
आज का सबसे बड़ा पुण्य यही है –
किसी एक पिता को क़र्ज़ के बोझ से बचा दो।
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